Monday 10 August 2015

ख़ुशियों का सिग्नल

हमेशा की तरह आज भी उठने में लेट हो गया, जब से जिंदगी में मोबाइल नाम की बीमारी हाथ में ली है तब से कभी टाइम पर उठ ही नही पाया , जल्दी से तैयार हो कर काम के निकला ही था के सिग्नल की रेड लाइट मुझे लेट करने के लिए मेरा इंतजार कर रही थी। मैं भी 60 सेकंड काटने के लिए इधर उधर देखने लगा , तभी सड़क पर मुझे कुछ चमकता हुआ दिखाई दिया, गौर से देखने पर पता चला वो एक कांच का कंचा था। मैंने झुक के उसे उठा लिया , पास में खड़ा गाड़ी वाला मुझे ऐसे घूर रहा था जैसे मैंने कोई बेशकीमती हीरा उठा लिया हो ।
        जैसे ही मैंने कंचा मुट्ठी में दबाया में आँखों के परदे पर बचपन की यादों की मूवी चलने लगी, बचपन में दोस्तों के साथ बहुत कंचे खेले, हालाँकि में कभी जीतता नहीं था लेकिन खेलता बहुत था। शाम होते ही सभी दोस्त बरगद के निचे इक्कठे हो जाते थे कंचे खेलने, जिसके पास ज्यादा कंचे होते थे वो अपने आप को किसी राजा से कम नही समझता था।और पुरे ग्रुप मे मेरी हालात सबसे खराब थी , लगातार हारने की वजह से सबसे कम कंचे मेरे पास ही होते थे , कभी कभी दोस्तों से लोन पे कंचे लेना पड़ते थे।
हम सब दोस्त कंचे खेल रहे थे , मैं भी आज सचिन की तरह चौके पे चौके मारे जा रहा था। में अपनी जिंदगी में पहली बार लगभग जीत ही चूका था तभी पीछे से जोरो के हॉर्न की आवाज आई और में जाग गया, अपने सपनो की दुनिया से बाहर आ गया . उस हॉर्न आवाज के साथ एक आवाज और आई "भाई मुंगेरीलाल , सपने देख लिए होतो गाड़ी आगे बढ़ाओ" ।
         और मेंने देखा ग्रीन सिग्नल हो चूका है , पीछे खड़े गाडी वाले जाने के लिए जल्दी मे है, मैंने भी बाइक स्टार्ट की और आगे बढ़ गया , मन में अभी भी यही चल रहा था की काश आज सिग्नल 15 सेकंड और रेड रहती तो में आज जीत जाता । आज पहली बार रेड लाइट पर गुस्सा नहीं आ रहा था , आज 60 सेकंड के लिए ही सही मुझे वो मेरे बचपन मे फिर से ले गयी ।
   

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